#dr rajendra prasad life story
प्रसंग-1
डॉ.राजेन्द्र प्रसाद जब राष्ट्रपति भवन में थे उनकी सेवा के लिए एक नौकर नियुक्त हुआ जिसका नाम था तुलसी। तुलसी ईमानदार था, पर था लापरवाह। घर की सफाई करते-करते कभी-कभी वह कुछ समान तोड़ देता। राजेन्द्र बाबू उसे बहुत बार कह चुके थे कि वह सावधानी से काम किया करे, लेकिन वह ध्यान नहीं देता।
एक विदेशी अतिथि ने हाथी दाँत की एक कलम राष्ट्रपति जी को भेंट की थी। वे इसे सहेज कर यत्न से रखते थे और प्रेम से लिखते थे। एकदिन तुलसी ने घर को सजाने के क्रम में उस कलम को भी तोड़ दिया। राजेन्द्र बाबू को यह देख काफी दुःख हुआ कि बार-बार चेताने पर भी तुलसी ने गलती कर ही दी। उन्होंने सचिव को बुलाकर कहा – ‘आप तुलसी को मेरे काम के लिए अब नियुक्त नहीं करें, उसे कहीं अन्यत्र नियुक्त कर दें, जहां सामान टूटने की सम्भावना न हो।’
तुलसी वहाँ से निकाल दिया गया। वह उद्यान में नौकरी में लग गया। दूसरे दिन अपने कमरे में सेवाकार्य में तुलसी को न पाकर राजेन्द्र बाबू बैचेन होने लगे। उन्होंने सोचा तुलसी ने जान-बूझकर तो कलम नहीं तोड़ी, काम करते समय उसका ध्यान कहीं अन्यत्र होगा गलती से यह टूट गयी। मैंने उसे अपने काम से निकालकर उसका अपमान किया है, उसकी भावना को ठेस पहुँचायी।
अन्ततः सचिव को बुलाकर उन्होंने कहा – ‘तुरन्त तुलसी को मेरे पास भेजिए’ तुलसी अपराधी की भाँति डरा-डरा उनके समक्ष सिर झुकाये उपस्थित हुआ। अज्ञात सम्भावना के भय से वह काँप रहा था कि राजेन्द्र बाबू ने कहा – ‘तुलसी तुम मुझे क्षमा कर दो, मुझसे भूल हुई है, तुम्हें हटाकर।’
तुलसी आश्चर्यचकित रह गया। गलती उसने की और बाबू उससे क्षमा माँग रहे हैं, उसकी आखों से अश्रुधारा बह चली। वह सोच नहीं पा रहा था कि क्या कहे, तब तक राजेन्द्र बाबू की आवाज सुनायी पड़ी- ‘जब तक तुम यह नहीं कह दोगे कि मैंने क्षमा किया मैं ऐसे ही तुम्हारे सामने खड़ा रहूंगा।’ अन्ततः तुलसी को कहना पड़ा- ‘ठीक है, क्षमा किया।’ उस दिन से तुलसी फिर राजेन्द्र बाबू की सेवा में लग गया।