“लोग हमेशा सोचते हैं कि जीवन में परिवर्तन कब आएगा ? – जीवन में परिवर्तन तब आयेगा जब आप बदलेंगे। सामने वाला नहीं बदलने वाला। आपको बदलना होगा। आपकी पत्नी नहीं बदलेगी आपको बदलना होगा। आपका पति नहीं बदलेगा आपको बदलना होगा। आपके पडोसी नहीं बदलेंगे आपको बदलना होगा। जो प्रकृति ने दिया वो दे दिया। हम अपने चेहरे का रंग तो नहीं बदल सकते पर अपने जीने का ढंग तो बदल सकते हैं।”
“अपने को बदलो, अपने मन को बदलो, अपने विचारों को बदलो, अपने नज़रिये को बदलो, अपने दृश्टिकोण को बदलो। जब नज़रे बदलती हैं तो नज़ारे बदल जाते हैं।”
“अपनी जुबान पर काबू रखिये। घर परिवार में अधिकतर झगड़े इस जीभ के कारण हीं होते हैं। चुप रहना भी जरूरी है। चुप रहने की आदत डालें। पूरे दिन में एक घंटा मौन रहिये। एक घंटा नहीं रख सकते तो कम से कम आधे घंटे का मौन रखिये। नहीं रख सकते तो 15 मिनट का मौन रखिए। नहीं रख सकते तो कम से कम भोजन तो मौन रह कर करिये।”
“आदमी की औकात एक मुट्ठी राख से ज्यादा नहीं है पर अपने को चक्रवर्ती का बाप समझता है – एक माचिस की तीली, एक लोटा घी, लकड़ियों के ढेर पर कुछ घंटे में बस राख बस इतनी सी है आदमी की औकात।”
“हर हाल में मुस्कुराने की आदत डाल लो तो जीवन सत्यम, शिवम्, सुंदरम का पर्याय बन जायेगा
औरों की मदद करें बिना फायदे देखे। मिलना जुलना सीखिए बिना मतलब के, जीवन जीना सीखिए बिना दिखावे के और मुस्कुराना सीखिए बिना सेल्फी के।
अगर कोई हँसता हुआ जानवर दिख जाये तो समझ लेना वो इंसान होने वाला है और कोई इंसान हँसी की बात पर भी न हँसे तो समझ लेना वह जानवर बनने वाला है।
भले ही लड़ लेना, झगड़ जाना, पिट जाना या पीट देना पर कभी भी बोलचाल बंद मत करना क्योंकि बोलचाल बंद करने से सुलह के सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं।
जिस दिन हमारे देश की नीति के साथ नियत अच्छी हो जायगी, अच्छे दिन आ जायेंगे। और नीति के साथ नियत अच्छी नहीं होगी तो भगवान भी कुछ नहीं कर सकते।
अपना तन-मन अपने परिवार को देना चल जायेगा। अपना धन सगे सम्बन्धियों को देना चल जायेगा। लेकिन अपना दिल ईश्वर के सिवाए किसी को मत देना।
रेस में जीतने वाले घोड़े को तो पता भी नहीं होता की जीतना वास्तव में क्या हैं, वो तो अपने मालिक के द्वारा दी गयी तकलीफ की वजह से दौड़ता हैं। तो जब भी जीवन में आपको तकलीफ हो और कोई मार्ग न दिखाई दे तब समझ लेना की मालिक आपको जिताना चाहता हैं।
सच्ची नींद और सच्चा स्वाद चाहियें तो पसीना बहाना मत भूलिए। बिना पसीने की कमाई पाप की कमाई है।
गुलाब काटों में भी खिलता हैं मुस्कुराता हैं। तुम भी प्रतिकूलता में मुस्कुराओ, तो लोग तुमसे गुलाब की तरह प्रेम करेंगे। याद रखना जिन्दा आदमी ही मुस्कुराएगा, मुर्दा कभी नहीं मुस्कुराता और कुत्ता चाहे तो भी मुस्कुरा नहीं सकता, हँसना तो सिर्फ मनुष्य के भाग्य में ही हैं। इसलिए जीवन में सुख आये तो हँस लेना, लेकिन दुख आये तो हँसी में उड़ा देना।
चार बातों को कचरे के डिब्बे में डाल दो – लोग क्या कहेंगे। , मुझसे नहीं होगा।, मेरा तो भाग्य ही ख़राब है। और अभी मेरा मूड नहीं है।
कभी तुम्हारे माँ – बाप तुम्हें डाट दे तो बुरा नहीं मानना। बल्कि सोचना – गलती होने पर माँ – बाप नहीं डाटेंगे तो और कौन डाटेंगे, और इसी तरह कभी छोटों से गलती हो जाये और यह सोचकर उन्हें माफ़ कर देना की गलतियां छोटे नहीं करेंगे तो और कौन करेंगा।
“श्मशान गांव के बाहर नहीं, बल्कि शहर के बीच चौराहे पर होना चाहिए । श्मशान उस जगह होना चाहिए जहां से आदमी दिन में 10 बार गुजरता है ताकि जब- जब वह वहां से गुजरे तो वहां जलती लाशे और अधजले मुर्दों को देख कर उसे भी अपनी मृत्यु का ख्याल आ जाए और अगर ऐसा हुआ तो दुनिया के 70 फ़ीसदी पाप और अपराध शब्द खत्म हो जाएंगे। आज का आदमी भूल गया है कि कल उसे मर जाना है तुम कहते जरूर होगे एक दिन सभी को मर जाना है। तुम कहते जरूर होगे कि एक दिन मर जाना है, पर उन मरने वालों में तुम अपने आप को अपने को कहा गिनते हो ?”
“The cemetery should not be outside the village, but on the intersection between the city. Cremation should be in place from which man passes ten times a day so that when he passes through there, seeing the burning flame and the dead body, he should also consider his death and if this happens then 70 per cent of the world’s sin And the word ‘crime’ will end. Today’s man has forgotten that tomorrow he is going to die, you must say that one day everyone is going to die, but in those who are dying do you count your own self?””
— मुनि तरुण सागर