Hindi Kavita : Main Toofano me chalne ka aadi hun
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ। तुम मत मेरी मंजिल आसान करो हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढाते सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं मेरे पग तब चलने में भी शर्माते। मेरे संग चलने लगे हवायें जिससे तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो। अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूँ मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूँ हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूँ। है नहीं स्वीकार दया अपनी भी तुम मत मुझपर कोई एहसान करो मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो। शर्म के जल से राह सदा सिंचती है गति की मशाल आंधी में ही हंसती है शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है मंजिल की मांग लहू से ही सजती है। पग में गति आती है, छाले छिलने से तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो। फूलों से जग आसान नहीं होता है रुकने से पग गतिवान नहीं होता है अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी है नाश जहां निर्मम वहीं होता है। मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो। मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता मेरा दुनिया से केवल इतना नाता वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता। मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे, तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ, तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
- स्व. गोपालदास नीरज