इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी,
जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी,
यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की,
अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ||
यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न-विजय-माला-सी,
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी,
सहे वार पर वार अंत तक, लड़ी वीर बाला-सी,
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला-सी |
बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से,
मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से,
रानी से भी अधिक हमे अब, यह समाधि है प्यारी,
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की, आशा की चिनगारी ||
इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते,
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते,
पर कवियों की अमर गिरा में, इसकी अमिट कहानी,
स्नेह और श्रद्धा से गाती, है वीरों की बानी ||
बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी,
खूब लड़ी मरदानी वह थी, झाँसी वाली रानी,
यह समाधि यह चिर समाधि है , झाँसी की रानी की,
अंतिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ||