इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी – Hindi Poem
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी…जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी…
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी…जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी…
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,..बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,…खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी, तुम मत मुझपर कोई एहसान करो, मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ। , तुम मत मेरी मंजिल आसान करो….
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम। कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती…
है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में?. ख़म ठोक ठेलता है जब नर ,पर्वत के जाते पाँव उखड़..
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें, यह व्यर्थ न हो, कुछ तो उपयुक्त करो तन को, नर हो, न निराश करो मन को। — मैथलीशरण गुप्त