कलम, आज उनकी जय बोल : रामधारी सिंह “दिनकर”

जला अस्थियाँ बारी-बारीचिटकाई जिनमें चिंगारी,जो चढ़ गये पुण्यवेदी परलिए बिना गर्दन का मोलकलम, आज उनकी जय बोल। जो अगणित लघु दीप हमारेतूफानों में एक किनारे,जल-जलाकर बुझ गए किसी दिनमाँगा नहीं स्नेह मुँह खोलकलम, आज उनकी जय बोल। पीकर जिनकी लाल शिखाएँउगल रही सौ लपट दिशाएं,जिनके सिंहनाद से सहमीधरती रही अभी तक डोलकलम, आज उनकी जय … Read more

परिचय : रामधारी सिंह “दिनकर”

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैंस्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैंबँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैंनहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं समाना चाहता, जो बीन उर मेंविकल उस शून्य की झंकार हूँ मैंभटकता खोजता हूँ, ज्योति तम मेंसुना है ज्योति का आगार हूँ मैं जिसे निशि खोजती तारे जलाकरउसी का कर … Read more

जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे : रामधारी सिंह “दिनकर”

वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सम्भालो,चट्टानों की छाती से दूध निकालो,है रुकी जहाँ भी धार, शिलाएँ तोड़ो,पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो । चढ़ तुँग शैल शिखरों पर सोम पियो रे !योगियों नहीं विजयी के सदृश जियो रे ! जब कुपित काल धीरता त्याग जलता है,चिनगी बन फूलों का पराग जलता है,सौन्दर्य बोध बन नई आग … Read more